क्या देश की राजधानी में नहीं है बेघरों का ठिकाना?

"गंदा हो नाला या गंदी सड़क

मौसम हो बिगड़ा या धूप कड़क

हर परिस्थिति में डालना है अपना डेरा

गरीबों की एक ही उम्मीद उनका रैन बसेरा"

"सचिन कुमार"

राजधानी दिल्ली के बस स्टैंड पर आमतौर में लोग बसों के इंतजार में खड़े दिखते हैं पर दिल्ली के एम्स बस स्टैंड पर कुछ अलग ही मंजर देखने को मिला है। दिल्ली के एम्स बस स्टैंड पर कुछ बेघर लोग स्टैंड पर सोते दिखाई दिए। कहने को दिल्ली देश की राजधानी है पर इन गरीब बेघरों को सरकार रैन बसेरे मुहैया कराने में असफल रही है। एम्स बस स्टैंड पर बेघरों की संख्या अंदाजन 20 से 25 थी।

सुरेश (बदला हुआ नाम )बताते है कि वह अपने किसी परिजन को देखने दिल्ली आए है जो की एम्स अस्पताल में भर्ती है। अस्पताल में रात को रुकने नही दिया जाता और दिल्ली में कोई जानकार नहीं है इसीलिए वह बाहर रात गुजारने को मजबूर है।

रामविलास (बदला हुआ नाम) बताते है कि उनका एक हाथ काम नही करता है और वह एम्स रोड पर सुबह फुल बेचने का काम करते है। उन्होंने बताया कि उनके पास रहने के लिए घर नहीं है। वह ग्रीन पार्क के जिस रैन बसेरे में रहते थे उस रैन बसेरे की तरफ से कहा गया की इसकी मरम्मत होनी है, तो दो दिन बाद से रहना शुरू करना। जब राम विलास वापस रैन बसेरे गए तो उन्हें यह कह के वहां से भेज दिया की यहां जगह खाली नहीं है।

अब सवाल यह है कि इस कड़कती ठंड से आम जनों को कब राहत मिलेगी?

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