दिल्ली के आरके पुरम का लेबर चौक जहां मजदूर परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने काम की तलाश में रोज इक्कठे होते है। यहां करीब हर दिन 30-32 मजदूर काम की उम्मीद में आते है।
रमेश (बदला हुआ नाम) वह बताते है कि 7–8 दिन से उनके पास कोई काम नहीं आया। रमेश पेशे से लेबर है। वह हर दिन आरके पुरम लेबर चौक जाकर पूरे दिन इंतजार करते है कि कोई काम मिले पर उन्हें कोई काम नही मिलता । उनका मूल रूप से काम मिस्त्री के साथ हाथ बटाने का है पर वह इस दौर में जहां उनके पास कोई काम नही है रमेश लोगों के यहां सफाई जैसे दैनिक काम करने को भी तैयार है। रमेश ने बताया कि संकट के समय में दिल्ली सरकार की तरफ से मदद नहीं मिल पाती कोरोना काल के समय भुखमरी जैसे हालात पैदा हो गए थे तो उन्होंने अपने गांव जाने का रुख किया था।
ऐसा ही हाल विजय ( बदला हुआ नाम) पेशे से विजय मिस्त्री है। विजय बताते है कि जब दिल्ली में प्रदूषण काफी बढ़ रखा था तो सरकार ने निर्माणधीन गतिविधियों पर रोक लगा दी थी और विजय की दाल रोटी निर्माणधीन गतिविधियों से ही चलती है उन्होंने बताया उस संकट के समय में उन्हे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा, मकान मालिक भी तंगी के समय किराए की मांग करता था।
एक और मजदूर सौरभ (बदला हुआ नाम ) पेशे से लेबर है, वह बताते है कि सरकार ने न्यूनतम मजदूर तय की है पर लोग आकर उसमे भी मोल भाव करते है और जो मजदूर साथी कम भाव बताता है उसे काम दे देते है। ठेकेदार भी पूरे पैसे नहीं देता तय दिहाड़ी से कम पैसे देता है । वह बताते हैं कि रोज़ रोज़ काम नहीं मिल पाता अगर ऐसे चलता रहा तो भूखे मरने की नौबत आ सकती हैं।
रामनिवास (बदला हुआ नाम) ने बताया कि आसानी से काम नहीं मिलता। जब कोई मजदूर की तलाश में आता है तो उसके पीछे पीछे गिड़गिड़ाने से काम मिलता है। रामनिवास बताते है कि उनको नए काम में दिलचस्पी नहीं हैं , वह शुरुआत से ही मिस्त्री का काम कर रहे है । रामनिवास अभी तक 30 से ज्यादा घर बना चुके है। काम ना मिलने से वह घर का राशन नही खरीद पा रहे क्यूंकि काम इतने दिन से है नही जो पैसे उन्होंने बुरे समय के लिए बचा रखे थे वो अब खत्म होने की कगार पर है। अभी भी वह काम की तलाश में है ।
अन्य मजदूरों से बात करने से पता लगा कि उनकी समस्याएं बहुत है खास कर न्यूनतम आय को लेकर। सरकार ने जो दिन का मूल्य तय किया है असल में उनको वो मिल नहीं पाता। जिनको भी अपने घर में काम करवाना होता वह कम मूल्यों में अच्छा मजदूर चुन कर ले जाता है।।इस बीच परेशानी उन मजदूरों को हो रही है जो ईमानदारी से अपनी मजदूरी करते हैं। देश में ऐसे कई इलाके हैं जिन्हें लेबर चौक के नाम से जाना जाता है। हर शहर में हजारों मजदूर होते हैं जो इन चौकों पर अपने उपकरण ले जाते हैं और काम मिलने का इंतजार करते हैं। भारत में कई ऐसे लेबर चौक है जहां मजदूर दिन भर काम मिलने का इंतजार करते है। मजदूरों की परेशानियां तो बहुत है लेकिन सुनने वाला कोई नही है।
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